चंडीगढ़। Punjab and Haryana High Court ने हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (HSVP) के खिलाफ बेहद कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा है कि प्राधिकरण ने मनमाने ढंग से काम किया और स्थापित कानूनों का स्पष्ट उल्लंघन किया। अदालत ने यह टिप्पणी उस मामले में की, जिसमें HSVP ने जमीन विस्थापितों को वर्षों तक भूखंड आवंटन से वंचित रखा और बाद में अचानक बढ़े हुए आरक्षित मूल्य पर भुगतान की मांग कर दी।
सरकारी निष्क्रियता का लाभ नहीं उठा सकती कोई संस्था
हाईकोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि कोई भी सरकारी संस्था अपनी ही निष्क्रियता का फायदा नहीं उठा सकती। यदि किसी प्राधिकरण ने समय पर निर्णय नहीं लिया, तो उसकी सजा आम नागरिकों को नहीं दी जा सकती। अदालत ने माना कि HSVP का यह रवैया न केवल अनुचित है, बल्कि Rule of Law के भी खिलाफ है।
58 याचिकाओं पर एक साथ फैसला, HSVP पर जुर्माना
इस मामले में 58 याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए अदालत ने विवादित मूल्य निर्धारण से जुड़े प्रावधानों को रद्द कर दिया और HSVP पर ₹3 लाख का जुर्माना भी लगाया। अदालत ने कहा कि स्पष्ट कानूनी स्थिति के बावजूद HSVP ने नागरिकों को अनावश्यक मुकदमेबाजी में धकेला, जो किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है।
आवेदन की तिथि की दर ही मान्य होगी
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में यह अहम सिद्धांत स्थापित किया कि यदि भूखंड आवंटन में देरी पूरी तरह से विकास प्राधिकरण की गलती के कारण हुई है, तो विस्थापित व्यक्ति आवेदन की तिथि पर प्रचलित मूल्य का ही हकदार होगा, न कि वर्षों बाद लागू हुई बढ़ी हुई दर का। अदालत ने कहा कि प्रशासनिक देरी को मौद्रिक रूप से नागरिकों पर नहीं थोपा जा सकता।
6–7 साल तक आवंटन लटकाया, फिर बढ़ी कीमत थोपने की कोशिश
अदालत के समक्ष यह तथ्य सामने आया कि याचिकाकर्ता वे जमीन मालिक थे, जिनकी जमीन विभिन्न शहरी क्षेत्रों के विकास के लिए अधिग्रहित की गई थी। पुनर्वास योजना के तहत वे विस्थापित हो गए थे।
2018 में जारी सार्वजनिक सूचनाओं के अनुसार, उन्होंने भूखंड आवंटन के लिए आवेदन किया और आवश्यक अग्रिम राशि भी जमा की। इसके बावजूद HSVP ने करीब 6 से 7 वर्षों तक कोई आवंटन पत्र जारी नहीं किया।
2025-26 की दरें और ब्याज थोपने पर अदालत नाराज
जब इस वर्ष अंततः आवंटन किए गए, तो HSVP ने 2025-26 के मौजूदा आरक्षित मूल्य पर भुगतान की मांग की, जो आवेदन के समय की दरों से कई गुना अधिक था। इतना ही नहीं, कठोर भुगतान अनुसूची और ब्याज भी लगाया गया। अदालत ने इसे विस्थापितों के साथ खुला अन्याय करार दिया।
“कीमत छिपाना बाद में बढ़ोतरी का बहाना नहीं”
HSVP ने अदालत में दलील दी कि 2018 के विज्ञापन में कीमत का उल्लेख नहीं था, इसलिए मौजूदा दरें वसूलने का उसे अधिकार है। इस दलील को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि जानबूझकर कीमत छिपाना बाद में अधिक दरें लगाने का बहाना नहीं हो सकता। ऐसा आचरण Fairness, Transparency और कानून के शासन के विरुद्ध है।
पहले से तय कानून की अवहेलना का आरोप
पीठ ने कहा कि Rajiv Manchanda vs HUDA मामले में पूर्ण पीठ का फैसला इस मुद्दे को पहले ही पूरी तरह सुलझा चुका है। इसके बावजूद HSVP का रुख न केवल उस फैसले के खिलाफ है, बल्कि 2018 में बनाई गई उसकी अपनी नीति का भी सीधा उल्लंघन है, जिसे उसी निर्णय को लागू करने के लिए तैयार किया गया था।
आवंटन पत्रों के विवादित खंड रद्द
अदालत ने आदेश जारी करने से पहले आवंटन पत्रों के उन सभी विवादित खंडों को रद्द कर दिया, जिनमें वर्तमान आरक्षित कीमतों की मांग की गई थी। साथ ही HSVP को निर्देश दिए कि वह Rajiv Manchanda मामले और 2018 की नीति के अनुसार वैध भुगतान शर्तों के तहत आवंटन मूल्य को नए सिरे से निर्धारित करे।
समान परिस्थितियों में समान लाभ देना अनिवार्य
हाईकोर्ट ने राज्य को चेतावनी देते हुए कहा कि समान परिस्थितियों वाले व्यक्तियों के बीच भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए, भले ही उनमें से कुछ ने अदालत का दरवाजा न खटखटाया हो। अदालत ने कहा कि राज्य से निष्पक्षता और गरिमा के साथ कार्य करने की अपेक्षा की जाती है, खासकर तब जब वह समान मुद्दों पर बार-बार मुकदमे हार चुका हो।
राज्य को पीछे हटने की सलाह
अदालत ने टिप्पणी की कि राज्य के लिए यह वांछनीय होगा कि वह कानूनी रूप से अस्थिर आदेशों पर अड़े रहने के बजाय अपने कदम पीछे हटाए और विस्थापितों को स्वेच्छा से समान लाभ प्रदान करे। ऐसा करना न केवल कानून का सम्मान होगा, बल्कि अनावश्यक मुकदमेबाजी से भी बचाएगा।
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